यदि किसी का कामना पूरी ना हो तो दुखी हो जाते हैं। और कामना पूरी हो तो सुखी हो जाते हैं। और यदि कोई कामना ही ना हो तो आनंद ही आनंद है।
एक बार एक धनी सेठ जी एक संत को भोजन के लिए आमंत्रित किया था। संत जी का गुरुवार का व्रत था। अतः वे नहीं जा सके। लेकिन संत जी ने अपने दो शिष्यों को उस धनी सेठ के यहां अपने बदले में भोजन करने के लिए भेज दिया था।
जब दोनों शिष्य भोजन कर आश्रम लौटे, उनमें से एक शिष्य दुखी और दूसरा शिष्य प्रसन्न था। संत जी को आश्चर्य हुआ।
संत दुखी शिष्य से पूछता हैं :- क्यों दुखी हो? क्या सेठ ने भोजन में अंतर कर दिया।
शिष्य बोला :- नहीं गुरु जी।
गुरुजी :- क्या सम्मान करने में अंतर कर दिया।
शिष्य :- नहीं गुरु जी।
गुरुजी :- तो फिर क्या दान दक्षिणा में अंतर कर दिया।
शिष्य :- नहीं गुरु जी। मुझे 2 रूपये दिए और दूसरे को भी 2 रुपए दिए।
अब गुरु जी और ज्यादा आश्चर्यचकित हो गया
पूछा :- तो फिर तुम्हारे दुखी होने का क्या कारण है?
शिष्य बोला :- मैं सोचता था, कि सेठ जी बहुत धनी व्यक्ति हैं। मुझको ऐसा लग रहा था कि वह हमें 10 रुपए देंगे, लेकिन सिर्फ 2 रुपए ही दिए। यह सोच कर मैं थोड़ा दुखी हूं।
अब गुरूजी दूसरे शिष्य से पूछता है:- तुम क्यों इतना प्रसन्न हो?
दूसरा शिष्य बोला :- गुरु जी, सेठ जी बहुत ही कंजूस होते हुए भी हमें 2-2 रूपये दिए। मुझे लग रहा था कि वह हमें आठ आने से ज्यादा नहीं देगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसलिए मैं अत्यधिक प्रसन्न हूँ।
बस यही हमारे मन के साथ होता है। घटना तो सभी के जीवन में एक समान रूप से घटता है। लेकिन कोई दुखी रहता है तो कोई सुखी।
यदि किसी का कामना पूरी ना हो तो दुखी हो जाते हैं। और कामना पूरी हो तो सुखी हो जाते हैं। और यदि कोई कामना ही ना हो तो आनंद ही आनंद है।
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