अब तुम इस पुष्प की हुई पंखुड़ियों को जोड़ते हुए जाओ। ये क्या कह रही हो सीता पढ़िए :- new kahaniyan
अब तुम इस पुष्प की हुई पंखुड़ियों को जोड़ते हुए जाओ। ये क्या कह रही हो सीता पढ़िए :- new kahaniyan
दो दोस्तों की दोस्ती कैसे टूटी जानिए इस कहानी से :-
दोस्तों "शक" शक एक ऐसी बीज हैं जो दोस्ती तो क्या इससे रिश्ते नाते, व्यापार सभी को नष्ट किया जा सकता है। एक शक ही है जो दो कपल की रिश्ते को भी बर्बाद कर देता है।
गीता और सीता दो पक्के दोस्त थी। इनकी दोस्ती से पूरे स्कूल परिचित थी। इनकी शिक्षिका भी इनकी दोस्ती की खूब तारीफ किया करती थी।
कहती :- इनकी जैसी दोस्ती तो पूरे स्कूल में नहीं मिलेगी, इतनी अच्छी दोस्ती है। एक दिन इसके स्कूल में एक नई शिक्षिका आई।
गीता और सीता की पुरानी शिक्षिका नई शिक्षिका से कहती हैं :- इनके जैसे दोस्ती स्कूल में किसी की भी नहीं है। इनकी दोस्ती बहुत ही मजबूत है जिनको कोई भी तोड़ नहीं सकती।
नई शिक्षिका बोली :- नहीं आप जो कह रही हो वह बिल्कुल गलत है। इनकी दोस्ती को तोड़ा जा सकती है।
पुरानी शिक्षिका :- नहीं छोड़ी जा सकती
नई शिक्षिका :- उनकी दोस्ती को तोड़ी जा सकती हैं। क्यों ना मैं एक बार प्रयास करके दिखाऊ? नई शिक्षिका पुरानी शिक्षिका से शर्त लगा लेती हैं कि वह उन दोनों की दोस्ती को अवश्य ही तोड़ कर दिखाएगी।
अगले दिन नई शिक्षिका क्लास लेना शुरू कर दी। उस कक्षा में उनकी दोस्ती का खूब तारीफ सुनने को मिला। अगले दिन छमाही का पेपर था। शिक्षिका अपने मन में ही सोचती हैं। "कल से प्रयास करूंगी उनकी दोस्ती को तोड़ने की।"
जब अगले दिन गीता और सीता दोनों परीक्षा देने परीक्षा हॉल में बैठी थी। तभी नई शिक्षिका सीता के पास आती है और जब गीता उनकी ओर देखती हैं तभी शिक्षिका नाटक करती हुई सीता के कानों में कुछ फुसफुसाती हैं।
गीता को लगा कि शिक्षिका मेरे बारे में सीता से कुछ कह रही है। लेकिन शिक्षिका नाटक करती हैं। वह सीता से कुछ भी नहीं बोली थी।
जब पेपर खत्म हो गया तब अंतिम में गीता सीता से पूछती हैं :- यह बताओ कि आज टीचर ने तुम्हें पेपर के दौरान क्या बोली थी?
सीता :- कुछ भी तो नहीं बोली गीता।
फिर से अगले दिन जब वे सभी परीक्षा हॉल में बैठी थी। तभी शिक्षिका सीता के पास जाती हैं और गीता जैसे ही उनकी ओर देखती हैं, शिक्षका गीता की ओर इशारा कर सीता के कानों में कुछ कहने की नाटक करती हैं।
शिक्षिका ऐसे ही तीन से चार दिन सीता के साथ फुसफुसाने की नाटक करती रही। जब पूरा पेपर खत्म हो गया तब फिर से गीता सीता से पूछती है :- "सच में बताओ सीता की शिक्षिका ने तुमसे क्या कही थी?"
सीता :- कुछ भी तो नहीं बोली गीता
गीता अत्यधिक क्रोधित हो जाती हैं। कहती हैं "सीता बताओ शिक्षिका अवश्य ही कुछ तो बोली होगी।"
सीता :- गीता शिक्षिका ने मुझसे कुछ भी नहीं बोली। बस इतना कहीं कि किसी को भी यह बात मत बताना। बस इतना ही।
गीता और ज्यादा गुस्से में आ जाती हैं। कहती हैं। "तुम अपने दोस्त को नहीं बता रही हो। आज से हमारी दोस्ती नहीं रहेगी। हम आपस में भी बात नहीं करेंगे। मैं जा रही हूं।"
सीता गीता को बहुत समझाने की कोशिश की। लेकिन गीता सीता के बारे में भला बुरा कह कर उनका दिल तोड़ कर वहां से चली जाती है।
जब पूरे स्कूल में इनकी दोस्ती टूटने की खबर पहुंची सभी आश्चर्यचकित हो गया इनकी पुरानी शिक्षिका भी दंग रह गई।
नई शिक्षिका कहती हैं :- "देखो इनकी दोस्ती कुछ ही दिनों में टूट गई।" यह तुमने कैसे किया?
शिक्षिका कहती हैं :- देखो "शक" शक एक ऐसी बीज हैं जो दोस्ती तो क्या इससे रिश्ते नाते, व्यापार सभी को नष्ट किया जा सकता है। एक शक ही है जो दो कपल की रिश्ते को भी बर्बाद कर देता है।
शिक्षिका :- अब बहुत हो गया, हमें उन दोनों को बता देना चाहिए कि यह सब हम कर रहे थे। उनकी दोस्ती को तोड़ने के लिए।
शिक्षिका ने गीता और सीता को अपने ऑफिस में बुलाए।
शिक्षिका :- तुम दोनों आपस में नाराज मत होइए। तुम दोनों के साथ हमने एक खेल खेली थी। तुम्हारी दोस्ती को तोड़ने के लिए। इसलिए तुम दोनों के मध्य शक पैदा किया। तुम दोनों उसमें फंस गई। अब तुम दोनों फिर से पहले जैसी वाली दोस्त बन जाओ।
सीता गीता वहां से चले जाती हैं।
गीता सीता से माफी मांगती हैं। कहती हैं :- मुझे माफ कर देना सीता मुझसे भूल हो गई जब तुमने कही थी कि शिक्षिका ने मुझसे कुछ भी नहीं बोली है तो मुझे समझ में आ जाना चाहिए थी। लेकिन वह सब छोड़ो मुझे माफ कर दो, हम दोनों फिर से पक्के वाली दोस्त बन जाते हैं।
सीता कहती हैं :- मैं तुम्हें एक ही शर्त पर माफ करूंगी। यदि तुम इस गुलाब के फूल की एक-एक पंखुड़ियों को तोड़ते हुए मेरे घर तक यह कहते हुए आओगी, कि मुझे माफ कर दो सीता मुझसे गलती हो गई।
गीता वैसे ही करती है। गुलाब की पंखुड़ियों को तोड़ती हुई सीता के घर पहुंचती हैं।
गीता :- अब मुझे माफ कर दो सीता।
सीता :- अभी तुम जितने भी इस पुष्प के पंखुड़ियों को तोड़े हो उसे फिर से इस पुष्प में जोड़ते हुए अपने घर जाओ तभी माफ करूंगी।
गीता :- सीता यह क्या कह रही हो? भला टूटी हुई पुष्प की पंखुड़ियों को फिर से कैसे जोड़ा जा सकता है?
सीता :- वही तो मैं कहना चाहती हूं गीता, कि एक बार जब दिल टूट जाए तो उसे फिर से उसी प्रकार जोड़ा नहीं जा सकते। यह कहानी बस इतना ही।
यदि आपको इसकी आगे की कहानी चाहिए तो हमें कमेंट अवश्य करना मैं इसके आगे की कहानी लिखने का प्रयास करूंगा तब तक के लिए आप हमारी यह कहानी संग्रह पढ़ सकते हैं।
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