Jaadui Kahaniyan, jaadui अंगूठी मछली की भाग - 1। jaadui Kahaniyan in hindi. bacchon ki kahaniyan.
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धनीराम नाम का एक सेठ बहुत ही बड़ा मछली का व्यापारी था। उनके नीचे बहुत सारे मछुआरे काम करते थे। जिनमें विजय भी शामिल था। वे सभी मछुआरे सुबह को मछली पकड़ते और दोपहर होते ही उसे सेठ धनीराम की दुकान में बोली लगाने के लिए ले जाया करते थे।
ऐसे ही दिन बीतता गया। एक दिन विजय तालाब में मछलियां पकड़ रहा था। अचानक उसकी जाल में एक ऐसी मछली फंसी, जो दिखने में सुनहरी रंग की चमकदार सुंदर मछली थी। उस मछली से आवाज आई। रुकिए! "मुझे बाजार में मत बेचना"
विजय आश्चर्यचकित हो गया। क्योंकि विजय आज तक ऐसी मछली कभी नहीं देखा था, उसमें भी मछली बोल रही थी।
विजय उस मछली से पूछता है :- तुम कौन हो?
मछली कहती हैं :- मैं एक जलपरी हूं। मैं यहां पर बहुत दूर नदी से आई हूँ। एक दुष्ट तांत्रिक साधु ने मुझे श्राप देकर इस छोटे से तलाब में डाल दिया। यदि तुम मेरी मदद करोगे, तो मैं फिर से अपना रूप पा सकती हूं।
विजय बोला :- लेकिन कैसे? मुझे क्या करना होगा?
मछली बोली :- मेरी यह रूप कुछ ही समय के लिए है। मैं जब भी बोलूंगी कि मुझे नदी या समुद्र में डालने के लिए तुम वैसे ही करना, तभी मैं इस श्राप से मुक्त हो पाऊंगी। लेकिन फिलहाल अभी तुम मुझे अपने साथ ले जाओ।
विजय एक मटका लाता है, उसमें मछली रानी को डाल देते हैं। लेकिन अभी विजय का काम पूरा नहीं हुआ था। वह ढेर सारी मछलियां पकड़ लेता है। उन मछ्लीयो को धनीराम सेठ के यहां ले जाने से पहले सुनहरी मछली रानी को किसी सुरक्षित जगह में छुपा देता है। फिर चला जाता है।
शाम होते ही विजय उस मटकी को जिसमें मछली रानी थी, अपने घर ले जाता है। अपने सयन कमरे में एक टेबल पर मटके को रख देता है। रात में मछली बेहद ज्यादा चमकदार दिखाई दे रही थी। जो दिखने में अत्यंत ही सुंदर लग रही थी।
विजय उस मछली को निहारता ही रहा, लेकिन कब नींद पड़ गया पता ही नहीं चला। आधी रात को आवाज आने लगी। "मुझे इस मटकी से निकालो, मेरा दम घुट रही है।"
विजय डर कर उठता है। किसकी आवाज है? कौन है? लेकिन जैसे ही नींद से जागता है, मछली की ओर देखता है.. मछली बड़ी हो चुकी थी। कुछ कह रही थी :- "मुझे इस मटकी से निकालो, मेरी दम घुट रही है।"
विजय कहता है :- मेरे पास तो मटकी ही है। इससे बड़ा टंकी नहीं है। मैं इस छोटी सी झोपड़ी में ही रहता हूं। तो कहां से लाऊंगा टंकी।
मछली अपने मुंह से अंगूठी निकालती है और कहती हैं :- ये लो जादुई अंगूठी, इसे पहनकर तुम बोलना कि मुझे एक टंकी वाला घर चाहिए।
विजय अंगूठी ले लेता है और वैसा ही कहता है। विजय की झोपड़ी वाला घर पक्के मकान में परिवर्तित हो जाता है। जिसमें एक बड़ा सा टंकी था। विजय मछली को टंकी में डाल देता है। जैसे ही सुबह होती हैं विजय अपने काम में चला जाता है। लोग भी हैरान हो गए थे, इसका घर पक्की का मकान कैसे बन गया। यही चर्चा करते थे।
कुछ दिन बाद फिर से रात को वहीं आवाज आने लगी। "मुझे इस टंकी से निकालो, मेरी दम घुट रही है।" विजय फिर से मछली के पास पहुंचा और देखा। मछली अब और भी ज्यादा बड़ी हो चुकी थी।
मछली विजय से कहती है :- इस बार तुम अंगूठी पहन कर कहना। "मुझे स्विमिंग पूल वाला बंगला चाहिए"
विजय वैसा ही कहता है। इस बार विजय का मकान एक बंगले में परिवर्तित हो जाता है। जिसमें एक बहुत ही बड़ा स्विमिंग पूल था। वह मछली को उस पूल में डाल देता है।
कुछ दिन ऐसा ही बिता। फिर से एक दिन वहीं आवाज आने लगी। "मुझे स्विमिंग पूल से निकालो।" विजय स्विमिंग पूल के पास पहुंचता है। देखता है कि मछली बहुत ज्यादा बड़ी हो चुकी थी। लेकिन अभी भी मछली स्विमिंग पूल में आराम से रह सकती थी।
विजय कहता है :- इतना बड़ा स्विमिंग पूल है, तुम इसमें आराम से रह सकती हो। फिर क्यों चिल्ला रही हो?
मछली कहती है :- देखो विजय, मैं तुम्हें पहले ही बोली थी, कि तुम मुझे मैं जहां बोलूंगी वहां ले जाने के लिए। तभी मेरी श्राप टूटेगी।
विजय बोलता है :- ठीक है, लेकिन अब मैं तुम्हें कहां ले जाऊं?
मछली कहती है :- अब तुम मुझे नदी में ले जाओ। जिससे मैं श्राप मुक्त हो पाऊंगी। लेकिन एक बात और है, कि जब तुम मुझे यहां से ले जाओगे तब रास्ते में तुम्हें भी दुष्ट तांत्रिक रोकने की कोशिश अवश्य करेगा। तुम उसका चिंता मत करना, तुम उससे बिना डरे मुकाबला करना।
विजय कहता है :- लेकिन मैं तुम्हें वहां तक कैसे ले जाऊंगा? तुम तो बहुत बड़ी हो चुकी हो।
मछली कहती है :- तुम उस अंगूठी से मुझे झुओ। मैं छोटी हो जाऊंगी।
विजय वैसा ही करता है। मछली पहले कि जैसे ही छोटी हो जाती है।
अब मछली कहती है :- अब तुम इस अंगूठी को पहनकर तलवार मांग लो। क्योंकि वे दुस्ट तांत्रिक तुम्हें रोकने के लिए कुछ भी कर सकता है। तुम बिना डरे उसका मुकाबला करना।
विजय अंगूठी पहनकर तलवार मांगता है और उसे अपनी कमर में बांध लेता है। बिजय मछली रानी के कहे अनुसार उसे मटकी में डालकर नदी की ओर निकल जाता गया। जब विजय गांव से बाहर निकलता है, उसी रास्ते में एक तांत्रिक प्रकट हो जाता है।
जो विजय से कहता है :- रुको! मैं तुम्हें इस मछली को नहीं ले जाने दूंगा।
विजय बहुत डर जाता है। तांत्रिक विजय के गले को पकड़ लेता है। विजय की हाथों से मटकी छूट जाता है जिससे मछली भी नीचे गिर जाती हैं।
मछली कहती हैं :- डरो मत विजय उसका डटकर मुकाबला करो।
विजय कमर से तलवार निकालता है और उस तांत्रिक के पेट में घुसा देता है। तांत्रिक की मृत्यु हो जाती है। वह जलकर भस्म हो जाता है।
विजय टूटी हुई मटकी के टुकड़े में मछली को लेकर नदी की ओर चला जाता है। मछली को नदी में डालता ही बेहद दुखी हो जाता है। क्योंकि इतने दिनों तक मछली से घुल मिल जो चुका था।
मछली कहती हैं :- दुखी ना हो विजय, वैसे भी तुम्हारे पास वह अंगूठी है तुम्हें जिस भी चीज की कमी होगी, आवश्यकता होगी, उस अंगूठी से मांग लेना और तुम्हारे पास वो तलवार भी तो है। जब भी तुम्हें मुझे देखने की इच्छा होगी तुम इस नदी किनारे आ जाना। जब भी तुम बुलाओगे मैं आ जाऊंगी। ऐसा कहकर मछली नदी की गहराइयों में खो जाती हैं।
दोस्तों यह जादुई अंगूठी मछली की कहानी कैसा लगा हमें कमेंट अवश्य करें।
धन्यवाद
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