Nai kahaniyan, Top 5 nai kahaniyan in hindi for success सफलता के लिए 5 बेहतरीन नई कहानियां

 Nai kahaniyan, Top 5 nai kahaniyan in hindi for success सफलता के लिए 5 बेहतरीन नई कहानियां

दोस्तों कहानियां पढ़ना किसको पसंद नहीं है। आज Nai kahaniyan, Top 5 nai kahaniyan in hindi for success सफलता के लिए 5 बेहतरीन नई कहानियां ले कर आया हूँ। कहानियां वैसे तो काल्पनिक होते हैं लेकिन जीवन को समझने के लिए यह बहुत बड़ा कारगर साबित होता है। कहानियां बच्चों के लिए बहुत ही प्रिय होता है लेकिन आजकल के बच्चे कहानियां हो भूल ही गए हैं। पहले बड़े बुजुर्ग, दादा दादी कहानियां ही सुनाया करते थे। लेकिन आधुनिक युग में बच्चे मोबाइल में वीडियो गेम वगैरा में व्यस्त पाते हैं। इसलिए हम सभी का फर्ज बनता है कि ऐसे ही बच्चों को अपने खोए हुए परंपरा को आगे बढ़ाते हुए कहानियां सुनाना प्रारंभ कर देना चाहिए। इसलिए मैं इस कार्य मे लगा हुआ हूँ। मैं ऐसे ही कहानियों का संग्रह ढूंढ कर आपके लिए एकत्रित करता हूं। 
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Nai kahaniyan, Top 5 nai kahaniyan in hindi for success सफलता के लिए 5 बेहतरीन नई कहानियां

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1. संत और बिच्छु का अपना अपना स्वाभाव। 
2. कल की चिन्ता मे खोए हुए इस कहानी को अवश्य पढ़ें। 
3. साधु और ठग की कहानी 
4. दो दोस्त और भालू की प्रसिद्द कहानी
5. दो बेस्ट फ्रेंड की दोस्ती कैसे टूटती है इस कहानी से जाने। 

Nai kahaniyan, Top 5 nai kahaniyan in hindi for success सफलता के लिए 5 बेहतरीन नई कहानियां

संत और बिछु का अपना अपना स्वाभाव 

  बिच्छू जो स्वभाव से उग्र होता है। वह सदैव दूसरों को नुकसान पहुंचाता है और एक साधु जो स्वभाव से शांत होते हैं। वह सदैव दूसरों का कल्याण करते रहते हैं। 

  यह बात बरसात की समय की है। जब एक बिच्छू एक नाले में बह रहा था। संत बिच्छू को बहता देख, उसे बचाने के लिए गया। संत जी अपने हाथों से बिच्छू को निकाल रहा था तभी बिच्छू अपने स्वभाव के अनुसार संत जी को डंक मार कर फिर से नाले में गिर गया। 

 संत जी दुबारा बिच्छू को निकालने की कोशिश की लेकिन इस बार भी बिच्छू ने डंक मार कर नीचे गिर गया। संत जी ऐसे ही तीन से चार बार और प्रयास करते रहे। 

    पास में ही वैद्यराज जी का कुटिया था। वह संत को देखते ही आया और बिच्छू को डंडे के सहारे दूर फेंक दिया। 

 वैद्यराज संत जी से कहते हैं :- आप जानते ही हैं कि बिच्छू का स्वभाव सदैव नुकसान पहुंचाने का होते हैं। फिर भी आपने बिच्छू को अपने हाथों से बचाया। आपने ऐसा क्यों किया?

 संजीव कहते हैं :- जब बिच्छू अपना स्वभाव नहीं बदल सकता, तो मैं कैसे अपना स्वभाव बदल सकता हूं? यह कहते हुए संत खुश रहता है। उसके चेहरे मे तनिक भी गुस्सा नहीं रहता हैं। 

   दोस्तों आप भी चाहे कितना भी विकल परिस्थिति आये आप अपना स्वाभाव ना बदले।

कल की चिन्ता मे खोए हुए इस कहानी को अवश्य पढ़ें।

    बात उन दिनों की है जब भगवान शिव की कैलाश पर्वत पर सभा लगना था। सभी देवता गण उस सभा में सम्मिलित होने थे। तभी भगवान विष्णु अपने वाहन गरुड़ जी के साथ कैलाश पर्वत पहुंचा। 

   गरुड बहुत ज्यादा तेज उड़ते थे। उसे रेस में कोई भी नहीं हरा सकता था। वे मिनटों में हजारों कोस दूर उड़कर पहुंच सकते थे। विष्णु भगवान महल के अंदर चला गया और गरुड़ जी कैलाश पर्वत की खूबसूरती को निहार रहा था। 

   प्राकृतिक दृश्यों को देख रहे थे। तभी उनकी दृष्टि छोटी सी सुंदर रंग बिरंगी चिड़िया पर पड़ता है। गरुड उन्हें निहारता ही रहता है और सोचता है :- भगवान इसे कितना सुंदर बनाया है। ऐसा लगता हैं, बस इसे देखता ही रहूं। तभी वहां यमराज जी भी आ गया। 

 गरूड़ यमराज जी को प्रणाम करता है। यमराज जी गरुड़ को आशीर्वाद देता है। यमराज जी पहले तो उस चिड़िया को एकदम आश्चर्य से देखते हैं फिर महल के अंदर की ओर चला जाता है। देव सभा में।

   गरुड़ जी सोचने लगे कि "लगता है इस चिड़िया का अंतिम समय निकट आ गया है। जब यमराज जी देव सभा से निकलेगा तब इस चिड़िया को भी अपने साथ ले जाएंगे।"

   यह सोच गरुड़ जी उस सुंदर चिड़िया को अपने पंजों में पकड़ लिया और वहां से बहुत दूर लगभग हजारों कोस दूर एक सुनसान जंगल में एक पत्थर पर छोड़ दिया और अपने आप से कहने लगा। "अब शायद यह चिड़िया यहां सुरक्षित रहेगा, इसे यमराज जी भी अभी नहीं ले जा सकते। 

   भगवान भरोसे छोड़ गरुड़ कुछ समय में ही कैलाश पर्वत पर फिर पहुंच गया क्योंकि गरुड़ जी बहुत ही तेज रफ्तार से एक स्थान से दूसरे स्थान पहुंच जाते थे। उनका मुकाबला कोई नहीं कर सकता था। 

   जब गरुड़ जी कैलाश पर्वत पर पहुंचा फिर से कैलाश पर्वत की प्राकृतिक दृश्यों को निहारता रहा। तभी देव सभा समाप्त हो गया। यमराज जी बहार आए। गरुड जी यमराज जी से पूछ लिया :- यमराज जी आप जाने से पहले एक चिड़िया को इतने आश्चर्य से क्यों देख रहे थे।

 यमराज जी कहते हैं :- गरुड़ उस चिड़िया का अंतिम समय निकट आ गया था। लेकिन उसकी मृत्यु जहां कैलाश पर्वत पर नहीं होती। यहां से हजारों कोष दूर एक सुनसान जंगल में, जब यह चिड़िया एक पत्थर पर बैठी होगी तब एक सांप के द्वारा उसका भोजन बनेगी। 

 मैं यह सोच कर आश्चर्यचकित था, कि वह सुंदर चिड़िया अभी कैलाश पर्वत में है तो इतने कम समय में हजारों कोस दूर सुनसान जंगल पर कैसे पहुंच सकते हैं। लेकिन अभी तो वह सुंदर चिड़िया दिखाई नहीं दे रहे हैं। अर्थात उसकी मृत्यु निश्चित हो गई होगी। 

  तब गुरुजी सोचने लगता है। यह मैंने क्या कर दिया मैंने उस चिड़िया को उस सुनसान जंगल में उस पत्थर पर छोड़ आया। अभी तक तो वह चिड़िया सांप का भोजन बन गई होगी और उसकी मृत्यु भी हो गई होगी। 

   दोस्तों मृत्यु को कोई नहीं टाल सकता। हमें अपने आने वाले अगला पल ही ज्ञात नहीं होता, फिर भी हम कल की चिंता में खोए हुए होते हैं। अतः आप हर एक पल को खुल कर जिओ उसका आनंद लिया करें।

   जब हमारी जाने का समय होगा तो भगवान उस समय ले जाएंगे। बेवजह क्यों सोचते रहते हैं अपने जीवन के बारे में।

साधु और ठग की कहानी

एक गांव में जीवार्धन नाम का ब्राह्मण रहता था। उन्हें दान में खूब सारे कपड़े और कीमती वस्तुएं गांव में दिया करते थे। जीवार्धन उन सभी वस्तुओं को बेचकर बहुत सारा धन अर्जित किया। 

   जीवार्धन सदैव धन को अपने पोटली में एक गटरी बनाकर रखते थे। उसे किसी पर भी ज्यादा भरोसा ना था। जीवादन जहां भी जाता पोटली अपनी ही पास रखता था। 

 एक जीवा नाम का ठग कुछ दिनों से उस ब्राह्मण पर अपनी नजर रखा हुआ था। वह सोचने लगा :- "लगता है इस ब्राह्मण की पोटली में बहुमूल्य वस्तु होगा, तभी तो सदैव अपने ही पास रखता है। क्यों ना इससे वह बहुमूल्य वस्तु ठग लिया जाए? लेकिन उससे पहले इस ब्राह्मण का विश्वास जीतना होगा, तब मौका मिलते ही गठरी को चुरा लूंगा।"

 जीवा ठग उस ब्राम्हण के पास जाता है और कहता है :- गुरु जी आप मुझे अपना शिष्य बना लीजिए, मैं आजीवन आपकी सेवा करूंगा। मैं अत्यंत ही गरीब और अकेला व्यक्ति हूं। आपकी सेवा कर मैं धन्य हो जाऊंगा।

  ब्राम्हण बोले :-  ठीक है, मैं तुम्हें अपना शिष्य बना लूंगा, लेकिन एक शर्त है। तुम इस पोटली को हाथ भी नहीं लगाओगे, शर्त मंजूर है तो बोलो। 

   ठग जीवा बोला :- ठीक है गुरुदेव…

   अब कुछ दिनों तक जीवा उस ब्राह्मण के साथ व्यवहार कुशलता के साथ रहने लगा। वे गुरुजी की बहुत सेवा भी करता था। तथा दोनों आनंद पूर्वक रहने लगे।

 एक दिन ब्राम्हण का पुराना शिष्य ने उसे भोजन के लिए आमंत्रित किया। वह ब्राम्हण अपने शिष्य जीवा के साथ भोजन करने के लिए चला गया।

जब उस शिष्य के यहां एक बहुत कीमती वस्तु नीचे गिरा था, उसे देख जीवा बोल पड़ा :- गुरु जी यह बहुमूल्य वस्तु निश्चित ही हमारा नहीं है। हम इसके स्वामी को लौटा देते हैं। उन दोनों ने वह वस्तु ब्राह्मण अपने पुराने शिष्य को दे दिए।

   ब्राम्हण मन ही मन सोचने लगा। "यह शिष्य तो बहुत ही ईमानदार है, यह मेरा बहुमूल्य सामाने नहीं चुरायेगा।" यह सोच एकदम निश्चिंत हो जाता है। 

 जब वे दोनों भोजन कर वापस गांव की ओर लौट रहे थे। रास्ते में एक नदी पड़ा, जीवार्धन को नहाने की इच्छा हुई,

   लेकिन इस बार उन्होंने अपनी पोटली को यह कहते हुए जीवा को पकड़ा दिया, कि "शिष्य यह पोटली संभाल कर रखना मैं नहाने के लिए जा रहा हूं। जब तक मैं नहा कर ना आऊ इसे सुरक्षित अपने पास ही रखना।"

   बिचारा ब्राम्हण को क्या पता था? लेकिन वह भी एक अनजान व्यक्ति पर इतना जल्दी भरोसा भी कर लिया और नहाने के लिए चला गया। 

   नदी के उस पार बकरियों की आपस में लड़ाई हो रही होती हैं, ब्राह्मण उसी को देख रहा था और नहा रहा था।  इधर जीवा को भी जिस समय की ताक में था वह समय आज मिल गया था। वह तुरंत ही पोठरी और उसमें रखी गटरी को पकड़ा और वहां से नौ दो ग्यारह हो गया। 

   जब ब्राम्हण वहां पर आया उन्होंने पहले तो जीवा को पुकारा, फिर न दिखने पर वह समझ गया कि वह ठगा जा चुका है।

    यह होता है किसी अनजान व्यक्ति पर इतना जल्दी भरोसा करने का नतीजा। अतः सतर्क रहिए और खुश रहिए। 


दो दोस्त और भालू की प्रसिद्द कहानी


   किसी गांव में रामू और घनश्याम दो पक्के मित्र थे। गांव वाले भी इनकी दोस्ती की खूब तारीफ किया करते थे। मानो इन दोनों की दोस्ती के जैसा पूरे गांव में दूसरा कोई मौजूद ना हो।
    रामू दिखने में तो दुबला पतला और फुर्तीला था। लेकिन घनश्याम हट्टा कट्टा और मोटू था। उन दोनों की गांव में खूब चर्चा हुआ करते थे। गांव में कुछ भी कार्य हो रहे हो वह दोनों पहले ही पहुंच जाते थे।
    एक समय की बात है उस गांव में बहुत बड़ा कार्यक्रम होने वाला था। उसकी साज-सज्जा की सामान लाने के लिए शहर जाना था। लेकिन जाएगा तो जाएगा कौन? यह सभी सोच रहे थे। तभी रामू और घनश्याम साज-सज्जा की समान को लाने के लिए तैयार हो गया।
    उनके गांव से शहर जाने वाले रास्ते के बीच में एक जंगल पड़ता था। जब रामु और घनश्याम उस जंगल को पार कर रहे थे अचानक सामने एक भालू की नजर उस पर पड़ गया। वे दोनों स्कूल में पढ़े थे, कि यदि कोई भालू जैसा जानवर सामने हो, तो पेड़ पर चढ़ जाना चाहिए।
   इस बात को याद कर रामू फटाक से पास के ही पेड़ पर चढ़ गया। लेकिन घनश्याम मोटे होने के कारण पेड़ पर चढ़ने में असफल रहा। उन्होंने रामू से भी पेड़ पर चढ़ने में मदद मांगा, लेकिन रामू भी उसका मदद करने से साफ इंकार कर दिया। बोलने लगा :- भालू पास में है यदि मैं तुम्हारा मदद करने की कोशिश करूंगा, तो वह हम दोनों को ही अपना शिकार बना लेंगे। तुम अपना कोई दूसरा उपाय ढूंढ लो।
 भालू घनश्याम की काफी नजदीक था। घनश्याम तुरंत ही जमीन पर गिरकर, नाटक करते हुए अपना स्वास कुछ समय के लिए रोक लिया। जब भालू घनश्याम की नजदीक आया। तो घनश्याम एकदम मृत व्यक्ति की स्थिति में आ गया। भालू उसे सूंघ कर वहां से चला गया।
   जब भालू वहां से चला गया, तब रामू पेड़ से उतरता हैं और अपने दोस्त घनश्याम से कहता हैं :- दोस्त वह भालू आपके कानों में क्या फुसफुस आ रहे थे?
 घनश्याम कहता हैं :- "भालू" भालू मेरे कानों में यह कह रहा था, कि किसी भी दोस्त पर इतना भी ज्यादा भरोसा मत किया कर। यह कह कर वहां से चला गया। 
 यह कहानी बस यहीं तक आप बताइए, आपको कैसा लगा। आप यह कहानी अपने दोस्तों में भी शेयर कर सकते हैं

दो बेस्ट फ्रेंड की दोस्ती कैसे टूटती है इस कहानी से जाने। 

     दोस्तों "शक" शक एक ऐसी बीज हैं जो दोस्ती तो क्या इससे रिश्ते नाते, व्यापार सभी को नष्ट किया जा सकता है। एक शक ही है जो दो कपल की रिश्ते को भी बर्बाद कर देता है।


गीता और सीता दो पक्के दोस्त थी। इनकी दोस्ती से पूरे स्कूल परिचित थी। इनकी शिक्षिका भी इनकी दोस्ती की खूब तारीफ किया करती थी।
कहती :- इनकी जैसी दोस्ती तो पूरे स्कूल में नहीं मिलेगी, इतनी अच्छी दोस्ती है। एक दिन इसके स्कूल में एक नई शिक्षिका आई।
गीता और सीता की पुरानी शिक्षिका नई शिक्षिका से कहती हैं :- इनके जैसे दोस्ती स्कूल में किसी की भी नहीं है। इनकी दोस्ती बहुत ही मजबूत है जिनको कोई भी तोड़ नहीं सकती।
नई शिक्षिका बोली :- नहीं आप जो कह रही हो वह बिल्कुल गलत है। इनकी दोस्ती को तोड़ा जा सकती है।

पुरानी शिक्षिका :- नहीं छोड़ी जा सकती

नई शिक्षिका :- उनकी दोस्ती को तोड़ी जा सकती हैं। क्यों ना मैं एक बार प्रयास करके दिखाऊ? नई शिक्षिका पुरानी शिक्षिका से शर्त लगा लेती हैं कि वह उन दोनों की दोस्ती को अवश्य ही तोड़ कर दिखाएगी।

अगले दिन नई शिक्षिका क्लास लेना शुरू कर दी। उस कक्षा में उनकी दोस्ती का खूब तारीफ सुनने को मिला। अगले दिन छमाही का पेपर था। शिक्षिका अपने मन में ही सोचती हैं। "कल से प्रयास करूंगी उनकी दोस्ती को तोड़ने की।"

जब अगले दिन गीता और सीता दोनों परीक्षा देने परीक्षा हॉल में बैठी थी। तभी नई शिक्षिका सीता के पास आती है और जब गीता उनकी ओर देखती हैं तभी शिक्षिका नाटक करती हुई सीता के कानों में कुछ फुसफुसाती हैं।

गीता को लगा कि शिक्षिका मेरे बारे में सीता से कुछ कह रही है। लेकिन शिक्षिका नाटक करती हैं। वह सीता से कुछ भी नहीं बोली थी।

जब पेपर खत्म हो गया तब अंतिम में गीता सीता से पूछती हैं :- यह बताओ कि आज टीचर ने तुम्हें पेपर के दौरान क्या बोली थी?

सीता :- कुछ भी तो नहीं बोली गीता।

फिर से अगले दिन जब वे सभी परीक्षा हॉल में बैठी थी। तभी शिक्षिका सीता के पास जाती हैं और गीता जैसे ही उनकी ओर देखती हैं, शिक्षका गीता की ओर इशारा कर सीता के कानों में कुछ कहने की नाटक करती हैं।

शिक्षिका ऐसे ही तीन से चार दिन सीता के साथ फुसफुसाने की नाटक करती रही। जब पूरा पेपर खत्म हो गया तब फिर से गीता सीता से पूछती है :- "सच में बताओ सीता की शिक्षिका ने तुमसे क्या कही थी?"

सीता :- कुछ भी तो नहीं बोली गीता

गीता अत्यधिक क्रोधित हो जाती हैं। कहती हैं "सीता बताओ शिक्षिका अवश्य ही कुछ तो बोली होगी।"

सीता :- गीता शिक्षिका ने मुझसे कुछ भी नहीं बोली। बस इतना कहीं कि किसी को भी यह बात मत बताना। बस इतना ही।

गीता और ज्यादा गुस्से में आ जाती हैं। कहती हैं। "तुम अपने दोस्त को नहीं बता रही हो। आज से हमारी दोस्ती नहीं रहेगी। हम आपस में भी बात नहीं करेंगे। मैं जा रही हूं।"

सीता गीता को बहुत समझाने की कोशिश की। लेकिन गीता सीता के बारे में भला बुरा कह कर उनका दिल तोड़ कर वहां से चली जाती है।

जब पूरे स्कूल में इनकी दोस्ती टूटने की खबर पहुंची सभी आश्चर्यचकित हो गया इनकी पुरानी शिक्षिका भी दंग रह गई।

नई शिक्षिका कहती हैं :- "देखो इनकी दोस्ती कुछ ही दिनों में टूट गई।" यह तुमने कैसे किया?

शिक्षिका कहती हैं :- देखो "शक" शक एक ऐसी बीज हैं जो दोस्ती तो क्या इससे रिश्ते नाते, व्यापार सभी को नष्ट किया जा सकता है। एक शक ही है जो दो कपल की रिश्ते को भी बर्बाद कर देता है।

शिक्षिका :- अब बहुत हो गया, हमें उन दोनों को बता देना चाहिए कि यह सब हम कर रहे थे। उनकी दोस्ती को तोड़ने के लिए।

शिक्षिका ने गीता और सीता को अपने ऑफिस में बुलाए।

शिक्षिका :- तुम दोनों आपस में नाराज मत होइए। तुम दोनों के साथ हमने एक खेल खेली थी। तुम्हारी दोस्ती को तोड़ने के लिए। इसलिए तुम दोनों के मध्य शक पैदा किया। तुम दोनों उसमें फंस गई। अब तुम दोनों फिर से पहले जैसी वाली दोस्त बन जाओ।

सीता गीता वहां से चले जाती हैं।

गीता सीता से माफी मांगती हैं। कहती हैं :- मुझे माफ कर देना सीता मुझसे भूल हो गई जब तुमने कही थी कि शिक्षिका ने मुझसे कुछ भी नहीं बोली है तो मुझे समझ में आ जाना चाहिए थी। लेकिन वह सब छोड़ो मुझे माफ कर दो, हम दोनों फिर से पक्के वाली दोस्त बन जाते हैं।

सीता कहती हैं :- मैं तुम्हें एक ही शर्त पर माफ करूंगी। यदि तुम इस गुलाब के फूल की एक-एक पंखुड़ियों को तोड़ते हुए मेरे घर तक यह कहते हुए आओगी, कि मुझे माफ कर दो सीता मुझसे गलती हो गई।

गीता वैसे ही करती है। गुलाब की पंखुड़ियों को तोड़ती हुई सीता के घर पहुंचती हैं।

गीता :- अब मुझे माफ कर दो सीता।

सीता :- अभी तुम जितने भी इस पुष्प के पंखुड़ियों को तोड़े हो उसे फिर से इस पुष्प में जोड़ते हुए अपने घर जाओ तभी माफ करूंगी।

गीता :- सीता यह क्या कह रही हो? भला टूटी हुई पुष्प की पंखुड़ियों को फिर से कैसे जोड़ा जा सकता है?

सीता :- वही तो मैं कहना चाहती हूं गीता, कि एक बार जब दिल टूट जाए तो उसे फिर से उसी प्रकार जोड़ा नहीं जा सकते। यह कहानी बस इतना ही। यदि और भी ज्यादा कहानियाँ पढ़ने के लिए हमारी कहानी संग्रह पढ़ सकते हैं।

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