bacchon ki kahaniyan, बच्चों के लिए कहानियाँ साधु और ठग की, best hindi kahaniyan
bacchon ki kahaniyan, बच्चों के लिए कहानियाँ साधु और ठग की, best hindi kahaniyan
एक गांव में जीवार्धन नाम का ब्राह्मण रहता था। उन्हें दान में खूब सारे कपड़े और कीमती वस्तुएं गांव में दिया करते थे। जीवार्धन उन सभी वस्तुओं को बेचकर बहुत सारा धन अर्जित किया।
जीवार्धन सदैव धन को अपने पोटली में एक गटरी बनाकर रखते थे। उसे किसी पर भी ज्यादा भरोसा ना था। जीवादन जहां भी जाता पोटली अपनी ही पास रखता था।
एक जीवा नाम का ठग कुछ दिनों से उस ब्राह्मण पर अपनी नजर रखा हुआ था। वह सोचने लगा :- "लगता है इस ब्राह्मण की पोटली में बहुमूल्य वस्तु होगा, तभी तो सदैव अपने ही पास रखता है। क्यों ना इससे वह बहुमूल्य वस्तु ठग लिया जाए? लेकिन उससे पहले इस ब्राह्मण का विश्वास जीतना होगा, तब मौका मिलते ही गठरी को चुरा लूंगा।"
जीवा ठग उस ब्राम्हण के पास जाता है और कहता है :- गुरु जी आप मुझे अपना शिष्य बना लीजिए, मैं आजीवन आपकी सेवा करूंगा। मैं अत्यंत ही गरीब और अकेला व्यक्ति हूं। आपकी सेवा कर मैं धन्य हो जाऊंगा।
ब्राम्हण बोले :- ठीक है, मैं तुम्हें अपना शिष्य बना लूंगा, लेकिन एक शर्त है। तुम इस पोटली को हाथ भी नहीं लगाओगे, शर्त मंजूर है तो बोलो।
ठग जीवा बोला :- ठीक है गुरुदेव…
अब कुछ दिनों तक जीवा उस ब्राह्मण के साथ व्यवहार कुशलता के साथ रहने लगा। वे गुरुजी की बहुत सेवा भी करता था। तथा दोनों आनंद पूर्वक रहने लगे।
एक दिन ब्राम्हण का पुराना शिष्य ने उसे भोजन के लिए आमंत्रित किया। वह ब्राम्हण अपने शिष्य जीवा के साथ भोजन करने के लिए चला गया।
जब उस शिष्य के यहां एक बहुत कीमती वस्तु नीचे गिरा था, उसे देख जीवा बोल पड़ा :- गुरु जी यह बहुमूल्य वस्तु निश्चित ही हमारा नहीं है। हम इसके स्वामी को लौटा देते हैं। उन दोनों ने वह वस्तु ब्राह्मण अपने पुराने शिष्य को दे दिए।
ब्राम्हण मन ही मन सोचने लगा। "यह शिष्य तो बहुत ही ईमानदार है, यह मेरा बहुमूल्य सामाने नहीं चुरायेगा।" यह सोच एकदम निश्चिंत हो जाता है।
जब वे दोनों भोजन कर वापस गांव की ओर लौट रहे थे। रास्ते में एक नदी पड़ा, जीवार्धन को नहाने की इच्छा हुई,
लेकिन इस बार उन्होंने अपनी पोटली को यह कहते हुए जीवा को पकड़ा दिया, कि "शिष्य यह पोटली संभाल कर रखना मैं नहाने के लिए जा रहा हूं। जब तक मैं नहा कर ना आऊ इसे सुरक्षित अपने पास ही रखना।"
बिचारा ब्राम्हण को क्या पता था? लेकिन वह भी एक अनजान व्यक्ति पर इतना जल्दी भरोसा भी कर लिया और नहाने के लिए चला गया।
नदी के उस पार बकरियों की आपस में लड़ाई हो रही होती हैं, ब्राह्मण उसी को देख रहा था और नहा रहा था। इधर जीवा को भी जिस समय की ताक में था वह समय आज मिल गया था। वह तुरंत ही पोठरी और उसमें रखी गटरी को पकड़ा और वहां से नौ दो ग्यारह हो गया।
जब ब्राम्हण वहां पर आया उन्होंने पहले तो जीवा को पुकारा, फिर न दिखने पर वह समझ गया कि वह ठगा जा चुका है।
यह होता है किसी अनजान व्यक्ति पर इतना जल्दी भरोसा करने का नतीजा। अतः सतर्क रहिए और खुश रहिए।
आज के लिए बस इतना ही कल फिर लौटूंगा नई कहानी के साथ। तब तक के लिए आप हमारी यह कहानियां संग्रह पढ़ सकते हैं :-
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