क्यों तेनाली रमन ने सुब्बाशास्त्री नामक ब्राह्मण का मजाक उड़ाया जानिए इस कहानी से तेनाली रमन की मजेदार कहानी।
आज की तेनाली रमन की कहानियों में हम पढ़ेंगे कि कैसे एक सुब्बाशास्त्री नामक ब्राह्मण का मजाक तेनाली रमन ने कैसे और क्यों उड़ाया। तो चलिए चलते हैं हमारी कहानी की ओर
यह बात उस समय की है जब विजयनगर राज्य में एक सुब्बाशास्त्री नामक ब्राह्मण रहा करता था। वह ब्राम्हण बहुत ही चतुर और चालाक था। वह अपने आप को पूरे राज्य में सबसे ज्ञानी और जानकार व्यक्ति समझते थे। मानो उनके मुकाबले में कोई ना हो।
लेकिन वे तेनाली रमन से बहुत ही ईर्ष्या किया करते थे, क्योंकि तेनाली रमन की प्रसिद्धि भी बढ़ती ही जा रही थी। जिससे सुब्बसास्त्री बहुत ही चिढते थे और समय-समय पर उनकी मजाक उड़ाने में लगे रहते थे।
उनको मौका मिलते ही नीचे गिराने की कोशिश करते रहते। तेनाली रमन ने भी बहुत कुछ सह लिया था। लेकिन जब बात आत्म सम्मान की हुई तब उन्होंने सोच लिया कि इससे बदला लेना ही चाहिए।
एक दिन राजा कृष्णदेव राय अपनी सैनिकों के लिए फुर्तीला घोड़ा खरीद रहा था। तेनाली नमन के लिए भी घोड़ा खरीदा और तेनाली रमन से कहने लगे :- "देखो तेनाली रमन इस घोड़े का अच्छे से ख्याल रखना।"
सभी ने अपना-अपना घोड़ा अपने घर ले गया। तेनाली रमन भी घोड़े को घर ले आया तथा इसके लिए एक ऐसा अस्तबल बनाया, जिसमें अंदर आने जाने के लिए कोई दरवाजा ही नहीं था। बस एक छोटी सी खिड़की थी।
घोड़ा अस्तबल के अंदर ही रहा करता था और इतने में भी तेनाली रमन प्रत्येक 2 दिन में उस खिड़की के पास जाकर चारा दिया करते थे। जिससे घोड़ा अत्यधिक भूखा रहा करते थे। अतः वह चारा पास आते ही अपने मुंह से खींच लेते थे।
तकरीबन 2 महीने तक ऐसा ही चलता रहा। कुछ दिन बाद महाराज ने सभी सैनिकों को घोड़े के सांथ राजमहल में बुलाया। वे परीक्षण करना चाहते थे की किसका घोड़ा किसकी अच्छे से बात मान रहा है।
सभी ने अपने घोड़े को राजमहल मे ले आया। लेकिन तेनाली रमन की घोड़े को ना पाकर सुब्बाशास्त्री कहने लगे :- तेनाली रमन कहां है और उसका घोड़ा भी।
महाराज ने सैनिकों को आदेश दिया की वह तेनाली रमन और उसके घोड़े को सांथ लेकर आए। तभी तेनाली रमन दौड़ते हांपते हुए राजमहल पहुंचा।
तेनाली रमन स्वास धीमी कर महाराज से कहा :- महाराज! मेरा घोड़ा तो मेरा बात ही नहीं मार रहा है। कृपया करके आप ऐसे व्यक्ति को मेरे साथ घोड़े लाने के लिए भेजें जो उसको संभाल सके।
सुब्बाशास्त्री महाराज से कहता है :- महाराज! यह किसी आम व्यक्ति की बस की बात नहीं है। अतः मैं ही चला जाता हूं। मैं घोड़े को काबू में करना अच्छी तरह से जानता हूं। यह बात सुन महाराज भी उसे कुछ सैनिकों के साथ जाने के लिए आदेश दे दिया।
अब सुब्बाशास्त्री, कुछ सैनिक और तेनाली रमन अपने अस्तबल के पास पहुंच गया। सुब्बाशास्त्री उस खिड़की के पास यह कहते हुए पहुंचा। "तेनाली रमन तुम यहां से दूर रहो यह किसी आम आदमी की बस की बात नहीं है।"
सुबह शास्त्री जब खिड़की के पास जाता है। घोड़े ने सुब्बाशास्त्री के दाढ़ी को चारा समझकर खींचने लगे। उसे छोड़ने के नाम ही नहीं ले रहे थे। सुब्बाशास्त्री चिल्लाने लगे। तभी सैनिकों ने अस्तबल का दीवार तोड़ा। और वैसे ही घोड़े को महल ले गया।
जब राजमहल पहुंचा तब सुब्बासस्त्री की स्थिति को देखकर राजमहल में बैठे सभी लोग ठहाके लगाकर हंसने लगे।
महाराज कृष्ण देव राय भी समझदार थे। वह समझ गया कि जरूर यह तेनाली रमन की ही चाल है। वे तेनाली रमन को सुब्बाशास्त्री से क्षमा मांगने के लिए कहते हैं।
तेनाली रमन जैसे ही सुब्बाशास्त्री से क्षमा मांगता उससे पहले ही सुब्बाशास्त्री उनसे छमा मांग लेते हैं। और कहते हैं महाराज यह मेरी ही गलती थी। मैं जब भी मौका मिलता तेनाली रमन को नीचे गिराने की कोशिश करता रहता था। वह तो सब कुछ सहते जाता। इसीलिए यह सब हुआ है। मुझे माफ कर देना। मैं अपने आप को ही श्रेष्ठ समझता था।
उस दिन सुब्बाशास्त्री कुछ भी गलत नहीं करूंगा कह कर वहां से चले गए दोस्तों यह कहानी आपको कैसी लगी हमें अवश्य बताएं।
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