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दोस्तों यदि आप कहानियां पढ़ने का शौक रखते हो तो आप सही जगह पर आए हो। क्योंकि यहां सिर्फ और सिर्फ कहानियां ही पब्लिश किया जाता है। और यहां आपको मिलेगी ढेर सारी ऐसी कहानियों का संग्रह जो जीवन की छोटी बड़ी उलझनों को चुटकियों में सुलझाने वाली होगी।
कहानियां हमारी जीवन जी एक बहुमूल्य शिक्षा है। इसे आप अपने आप से कभी भी दूर मत करिए, तो जल्दी से चलिए हमारी कहानी की ओर :-
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१.बिछु और सन्त
बिच्छू जो स्वभाव से उग्र होता है। वह सदैव दूसरों को नुकसान पहुंचाता है और एक साधु जो स्वभाव से शांत होते हैं। वह सदैव दूसरों का कल्याण करते रहते हैं।
यह बात बरसात की समय की है। जब एक बिच्छू एक नाले में बह रहा था। संत बिच्छू को बहता देख, उसे बचाने के लिए गया। संत जी अपने हाथों से बिच्छू को निकाल रहा था तभी बिच्छू अपने स्वभाव के अनुसार संत जी को डंक मार कर फिर से नाले में गिर गया।
संत जी दुबारा बिच्छू को निकालने की कोशिश की लेकिन इस बार भी बिच्छू ने डंक मार कर नीचे गिर गया। संत जी ऐसे ही तीन से चार बार और प्रयास करते रहे।
पास में ही वैद्यराज जी का कुटिया था। वह संत को देखते ही आया और बिच्छू को डंडे के सहारे दूर फेंक दिया।
वैद्यराज संत जी से कहते हैं :- आप जानते ही हैं कि बिच्छू का स्वभाव सदैव नुकसान पहुंचाने का होते हैं। फिर भी आपने बिच्छू को अपने हाथों से बचाया। आपने ऐसा क्यों किया?
संजीव कहते हैं :- जब बिच्छू अपना स्वभाव नहीं बदल सकता, तो मैं कैसे अपना स्वभाव बदल सकता हूं? यह कहते हुए संत खुश रहता है। उसके चेहरे मे तनिक भी गुस्सा नहीं रहता हैं।
दोस्तों आप भी चाहे कितना भी विकल परिस्थिति आये आप अपना स्वाभाव ना बदले।
Jaadui मछली
धनीराम नाम का एक सेठ बहुत ही बड़ा मछली का व्यापारी था। उनके नीचे बहुत सारे मछुआरे काम करते थे। जिनमें विजय भी शामिल था। वे सभी मछुआरे सुबह को मछली पकड़ते और दोपहर होते ही उसे सेठ धनीराम की दुकान में बोली लगाने के लिए ले जाया करते थे।
ऐसे ही दिन बीतता गया। एक दिन विजय तालाब में मछलियां पकड़ रहा था। अचानक उसकी जाल में एक ऐसी मछली फंसी, जो दिखने में सुनहरी रंग की चमकदार सुंदर मछली थी। उस मछली से आवाज आई। रुकिए! "मुझे बाजार में मत बेचना"
विजय आश्चर्यचकित हो गया। क्योंकि विजय आज तक ऐसी मछली कभी नहीं देखा था, उसमें भी मछली बोल रही थी।
विजय उस मछली से पूछता है :- तुम कौन हो?
मछली कहती हैं :- मैं एक जलपरी हूं। मैं यहां पर बहुत दूर नदी से आई हूँ। एक दुष्ट तांत्रिक साधु ने मुझे श्राप देकर इस छोटे से तलाब में डाल दिया। यदि तुम मेरी मदद करोगे, तो मैं फिर से अपना रूप पा सकती हूं।
विजय बोला :- लेकिन कैसे? मुझे क्या करना होगा?
मछली बोली :- मेरी यह रूप कुछ ही समय के लिए है। मैं जब भी बोलूंगी कि मुझे नदी या समुद्र में डालने के लिए तुम वैसे ही करना, तभी मैं इस श्राप से मुक्त हो पाऊंगी। लेकिन फिलहाल अभी तुम मुझे अपने साथ ले जाओ।
विजय एक मटका लाता है, उसमें मछली रानी को डाल देते हैं। लेकिन अभी विजय का काम पूरा नहीं हुआ था। वह ढेर सारी मछलियां पकड़ लेता है। उन मछ्लीयो को धनीराम सेठ के यहां ले जाने से पहले सुनहरी मछली रानी को किसी सुरक्षित जगह में छुपा देता है। फिर चला जाता है।
शाम होते ही विजय उस मटकी को जिसमें मछली रानी थी, अपने घर ले जाता है। अपने सयन कमरे में एक टेबल पर मटके को रख देता है। रात में मछली बेहद ज्यादा चमकदार दिखाई दे रही थी। जो दिखने में अत्यंत ही सुंदर लग रही थी।
विजय उस मछली को निहारता ही रहा, लेकिन कब नींद पड़ गया पता ही नहीं चला। आधी रात को आवाज आने लगी। "मुझे इस मटकी से निकालो, मेरा दम घुट रही है।"
विजय डर कर उठता है। किसकी आवाज है? कौन है? लेकिन जैसे ही नींद से जागता है, मछली की ओर देखता है.. मछली बड़ी हो चुकी थी। कुछ कह रही थी :- "मुझे इस मटकी से निकालो, मेरी दम घुट रही है।"
विजय कहता है :- मेरे पास तो मटकी ही है। इससे बड़ा टंकी नहीं है। मैं इस छोटी सी झोपड़ी में ही रहता हूं। तो कहां से लाऊंगा टंकी।
मछली अपने मुंह से अंगूठी निकालती है और कहती हैं :- ये लो जादुई अंगूठी, इसे पहनकर तुम बोलना कि मुझे एक टंकी वाला घर चाहिए।
विजय अंगूठी ले लेता है और वैसा ही कहता है। विजय की झोपड़ी वाला घर पक्के मकान में परिवर्तित हो जाता है। जिसमें एक बड़ा सा टंकी था। विजय मछली को टंकी में डाल देता है। जैसे ही सुबह होती हैं विजय अपने काम में चला जाता है। लोग भी हैरान हो गए थे, इसका घर पक्की का मकान कैसे बन गया। यही चर्चा करते थे।
कुछ दिन बाद फिर से रात को वहीं आवाज आने लगी। "मुझे इस टंकी से निकालो, मेरी दम घुट रही है।" विजय फिर से मछली के पास पहुंचा और देखा। मछली अब और भी ज्यादा बड़ी हो चुकी थी।
मछली विजय से कहती है :- इस बार तुम अंगूठी पहन कर कहना। "मुझे स्विमिंग पूल वाला बंगला चाहिए"
विजय वैसा ही कहता है। इस बार विजय का मकान एक बंगले में परिवर्तित हो जाता है। जिसमें एक बहुत ही बड़ा स्विमिंग पूल था। वह मछली को उस पूल में डाल देता है।
कुछ दिन ऐसा ही बिता। फिर से एक दिन वहीं आवाज आने लगी। "मुझे स्विमिंग पूल से निकालो।" विजय स्विमिंग पूल के पास पहुंचता है। देखता है कि मछली बहुत ज्यादा बड़ी हो चुकी थी। लेकिन अभी भी मछली स्विमिंग पूल में आराम से रह सकती थी।
विजय कहता है :- इतना बड़ा स्विमिंग पूल है, तुम इसमें आराम से रह सकती हो। फिर क्यों चिल्ला रही हो?
मछली कहती है :- देखो विजय, मैं तुम्हें पहले ही बोली थी, कि तुम मुझे मैं जहां बोलूंगी वहां ले जाने के लिए। तभी मेरी श्राप टूटेगी।
विजय बोलता है :- ठीक है, लेकिन अब मैं तुम्हें कहां ले जाऊं?
मछली कहती है :- अब तुम मुझे नदी में ले जाओ। जिससे मैं श्राप मुक्त हो पाऊंगी। लेकिन एक बात और है, कि जब तुम मुझे यहां से ले जाओगे तब रास्ते में तुम्हें भी दुष्ट तांत्रिक रोकने की कोशिश अवश्य करेगा। तुम उसका चिंता मत करना, तुम उससे बिना डरे मुकाबला करना।
विजय कहता है :- लेकिन मैं तुम्हें वहां तक कैसे ले जाऊंगा? तुम तो बहुत बड़ी हो चुकी हो।
मछली कहती है :- तुम उस अंगूठी से मुझे झुओ। मैं छोटी हो जाऊंगी।
विजय वैसा ही करता है। मछली पहले कि जैसे ही छोटी हो जाती है।
अब मछली कहती है :- अब तुम इस अंगूठी को पहनकर तलवार मांग लो। क्योंकि वे दुस्ट तांत्रिक तुम्हें रोकने के लिए कुछ भी कर सकता है। तुम बिना डरे उसका मुकाबला करना।
विजय अंगूठी पहनकर तलवार मांगता है और उसे अपनी कमर में बांध लेता है। बिजय मछली रानी के कहे अनुसार उसे मटकी में डालकर नदी की ओर निकल जाता गया। जब विजय गांव से बाहर निकलता है, उसी रास्ते में एक तांत्रिक प्रकट हो जाता है।
जो विजय से कहता है :- रुको! मैं तुम्हें इस मछली को नहीं ले जाने दूंगा।
विजय बहुत डर जाता है। तांत्रिक विजय के गले को पकड़ लेता है। विजय की हाथों से मटकी छूट जाता है जिससे मछली भी नीचे गिर जाती हैं।
मछली कहती हैं :- डरो मत विजय उसका डटकर मुकाबला करो।
विजय कमर से तलवार निकालता है और उस तांत्रिक के पेट में घुसा देता है। तांत्रिक की मृत्यु हो जाती है। वह जलकर भस्म हो जाता है।
विजय टूटी हुई मटकी के टुकड़े में मछली को लेकर नदी की ओर चला जाता है। मछली को नदी में डालता ही बेहद दुखी हो जाता है। क्योंकि इतने दिनों तक मछली से घुल मिल जो चुका था।
मछली कहती हैं :- दुखी ना हो विजय, वैसे भी तुम्हारे पास वह अंगूठी है तुम्हें जिस भी चीज की कमी होगी, आवश्यकता होगी, उस अंगूठी से मांग लेना और तुम्हारे पास वो तलवार भी तो है। जब भी तुम्हें मुझे देखने की इच्छा होगी तुम इस नदी किनारे आ जाना। जब भी तुम बुलाओगे मैं आ जाऊंगी। ऐसा कहकर मछली नदी की गहराइयों में खो जाती हैं।
दोस्तों यह जादुई अंगूठी मछली की कहानी कैसा लगा हमें कमेंट अवश्य करें।
धन्यवाद
चार लोगों की बातें
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दोस्तों यदि जीवन में आपको यदि success हासिल करनी है तो कुछ बातों को कुछ आदतों को अपनाना बेहद जरूरी हैं उनमें से एक मैं इस new kahaniyan के माध्यम से बतलाने जा रहा हूं।
आज की हमारी कहानी Motivational story in hindi for success के लिए Motivational story, new kahaniyan है। लोग क्या कहते हैं? इस पर बिल्कुल भी ध्यान ना दें। वरना इसका दुष्परिणाम क्या हो सकता है ? इस कहानी से समझे।
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यह new kahaniyan है एक बाप और बेटे की। बात उन दिनों की है, जब उनके गांव के पास वाले शहर में एक बहुत बड़ा पशु मेला लगा था जिसमे लोग सभी प्रकार के पशुओं को खरीदते और बेचते थे।
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उस व्यक्ति के पास एक गधा था। जो किसी भी काम का नहीं था। अतः वे उसे शहर में बेचने के उद्देश्य से निकला। वह व्यक्ति अपने बेटे के साथ गधे को लेकर पैदल चलते हुए जा रहे थे। वे लोग कुछ ही दूर पहुंचे थे, कि रास्ते पर कुछ महिलाएं तलाब किनारे कपड़े धो रही थी।
वह महिलाये एक दूसरे से कहने लगी। ''वह व्यक्ति कितना मूर्ख हैं, जो अपने बच्चे को पैदल चला रहा है। इससे अच्छा तो गधा की सवारी करवा देता।"
महिलाओं की आवाज उस व्यक्ति की कानों तक पहुंच रहा था। वह व्यक्ति सोचने लगा। "यह महिलाएं ठीक कह रही है, वैसे भी गधे को तो बेचने ही जा रहा हूं। तब तक मेरा लड़का इसका सवारी कर ले।" सोच व्यक्ति ने अपने लड़के को गधे पर चढ़ा दिया। लड़का भी गधे की सवारी कर बेहद खुश था।
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चलते चलते कुछ देर चलने के पश्चात कुछ बुजुर्ग व्यक्ति दिखता है। वह भी आपस में इनकी ओर इसारा करते हुए कहते है। "इस लड़के को तो अपनी बुजुर्ग पिताजी के लिए कोई इज्जत ही नहीं हैं। स्वयं गधे पर बैठे हैं और बूढ़े बाप पैदल चल रहा है।" यह बातें भी उस व्यक्ति तक पहुंच रहा था। वह व्यक्ति सोचने लगा। "यह लोग बिल्कुल सही कह रहे हैं, मेरे लड़के को मेरी इज्जत करनी चाहिए।" फिर क्या ? लड़के को गधे से उतारकर स्वयं उसकी सवारी कर लेता है। और निकल जाता है शहर की ओर।
चलते चलते कुछ ही देर हुआ था, कि रास्ते में कुछ नौजवान युवा साथी क्रिकेट खेल रहा था। वे लोग भी आपस में कहने लगे। "देखो एक निर्दई बाप को जो अपने बेटे को पैदल चला रहा है, और स्वयं गधे की सवारी कर रहा है। ये कैसा दिन आ गया है। यह बात भी उस व्यक्ति के कानों में गूंज रहा था। वह व्यक्ति खुद गधे से उतर जाता है और अपने लड़के को फिर से गधे के ऊपर बैठा देता है।
कुछ देर ऐसा ही चलता रहा कि रास्ते में कुछ ऐसे ही व्यक्ति मिले, जो आपस में कह रहे थे। "यह लोग कितना मूर्ख हैं? बेचारे लाचार गधे को तकलीफ पहुंचा रहे हैं।
इस बार तो उस व्यक्ति को अत्यधिक गुस्सा आने लगता है। फिर भी वह अपने लड़के को गधे से उतार देता है। तथा अपने लड़के से रस्सी और डंडे लाने के लिए कहता है। वे दोनों गधे के आगे पीछे के दोनों पैरों को आपस में बांध देता है और डंडे के सहारे से बाप बेटा स्वयं उस गधे को धो कर ले जाने लगे। तब तो रास्ते में आने वाले सभी लोग इस बाप बेटे पर खूब हंसने लगा। इस दुनिया मे मूर्ख लोगो की कोई कमी नहीं है। ये देखो मुर्ख बाप बेटा गधे को धो रहे है।
इस बार वह व्यक्ति पहले से बहुत ज्यादा क्रोधित गया। फिर भी इस बार वह दूसरे व्यक्तियों की बातों पर कोई ध्यान नहीं दे रहा था। बस चलते ही जा रहा था। क्योंकि शहर आने मे कुछ ही दूर बचा था।
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शहर जाने के लिए उन दोनों को सबसे पहले नदी पार करना था। वे दोनों गधे को लेकर पुल पार कर ही रहा था, कि अचानक गधा गुस्से में आ गया और अपने पैरों को छुड़ाने की कोशिश कर रहा था। गधे की इस कोशिश में वे उछलकर नदी में गिर जाता है। तथा गधे की तुरंत ही मृत्यु हो जाती हैं। बाप बेटा के हाथ में कुछ भी नहीं आता है। वे दोनों अफसोस करने लगते हैं। और खाली हाथ ही निराशा घर लौट जाते हैं।
Moral of the story :- लोग क्या कहते हैं? इस पर बिल्कुल भी ध्यान ना दें। वरना इसका दुष्परिणाम क्या हो सकता है ? इस कहानी से समझ ही गए होंगे। यह कहानी आपको कैसा लगा हमें कमेंट अवश्य करें।
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